आज फिर शंखनाद गूंजेगा
इस धरा पर कहीं समर होगा, भीष्म का फिर से आमरण होगा ,
कृष्ण का व्रत त्वरत में टूटेगा
आज फिर शंखनाद गूंजेगा।|
१.
रहेगा पाप का पलड़ा भारी,
सत्य फिर लेगा कहीं सिसकारी।
सुनेगा पुण्य फिर विवशता में ,
झूठ के वंशजों की किलकारी।
जलद के मध्य अरुण डूबेगा,
आज फिर शंखनाद गूंजेगा।
२.
" किन्तु " के बाद क्या सही होगा
असत का धर्मराज भी होगा
मोह में फिर पडेगा पार्थ कोई ,
कर्म गीता का फिर वही होगा
छोर रिश्तों का फिर से टूटेगा
आज फिर शंखनाद गूंजेगा
३.
अनगिनत फिर लहू बहाएंगे ,
अनकहे दीप झुलस जाएंगे ,
होगा फिर दानवीर कर्ण कोई
दोस्ती में वो मारे जाएंगे
रश्मि का द्युत प्रकाश फूटेगा
आज फिर शंखनाद गूंजेगा।
विनय विनम्र
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